शनिवार, 10 जून 2017

अहद-ए- वफ़ा

ahsas-ek sapna

उसके मिज़ाज़ सा बदलता इस शहर का मंजर क्यों है,
इश्क़ और मोहब्बत के बाजार में गम का असर क्यों है
बिछड़ कर भी नहीं बह गए रेत के घरौंदो की तरह हम
न जानो फिर भी इन मुस्कुराती आँखों में समंदर क्यों है
गुलिस्तां अब भी रोशन है हमारी दीवानगी की दास्ताँ से
चंचल मदमस्त उसकी आँखों में दुनिया का असर क्यों है
किस किस पर कब तलक अहद-ए- वफ़ा , एहतराम रखे
इस शहर में हर शख्स के हाथों में,चमकता ख़ंज़र क्यों है
मोहब्बत से लबरेज़ रिश्ते को अजनबी कर गया वो मेरे
ग़म इसी बात का है कि इस अहसास से वो बेख़बर क्यों है
कतरा कतरा कर गया वो मेरे जज्बातों को रौंद कर
धवल चाँदनी रातों में संजय को अब भी इंतज़ार क्यों है ...Sanjay Rai